श्लोक 01
धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ||1||
धृतराष्ट्र ने कहाः हे संजय! कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित होने के पश्चात, मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया?
धृतराष्ट्र का यह प्रश्न संजय से कि “उन्होंने युद्धभूमि में क्या किया?” न केवल उनकी चिंता और दुविधा को दर्शाता है, बल्कि उनकी मानसिक अवस्था को भी उजागर करता है। धृतराष्ट्र जन्म से नेत्रहीन थे, लेकिन उनके पुत्रों के प्रति उनके गहरे लगाव और मोह ने उनके आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टिकोण को भी प्रभावित किया।
कुरुक्षेत्र को ‘धर्मक्षेत्र’ के रूप में संदर्भित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भूमि धर्म और न्याय की प्रतीक मानी जाती है। धृतराष्ट्र के मन में यह भय था कि इस पवित्र भूमि का प्रभाव कहीं उनके पुत्रों को धर्म और अधर्म के बीच सही चुनाव करने के लिए प्रेरित न कर दे। वे चिंतित थे कि उनके पुत्र, विशेषकर दुर्योधन, कहीं पाण्डवों के प्रति सहानुभूति न दिखाने लगें और युद्ध करने के बजाय शांति का मार्ग न अपना लें।
धृतराष्ट्र का प्रश्न इस बात का प्रतीक है कि वह अपने पुत्रों की मानसिक स्थिति और उनके निर्णयों के प्रति अनिश्चित और आशंकित थे। वह जानना चाहते थे कि युद्धभूमि में उपस्थित होने के बाद उनके पुत्रों ने क्या प्रतिक्रिया दी, कहीं वे युद्ध करने के बजाय समझौता तो नहीं करने लगे।
इस प्रकार, धृतराष्ट्र का यह प्रश्न उनकी चिंता, मोह, और अपने पुत्रों के भविष्य के प्रति असुरक्षा की भावना को स्पष्ट करता है। यह उनकी मानसिक स्थिति को भी दर्शाता है, जिसमें वे युद्ध और शांति के संभावित परिणामों के बीच उलझे हुए थे।
जय श्री कृष्णा